Thursday 22 January 2015

थोड़ा जी ले, माफ़ी दे खुद को

क्यू तू सोचे क्या ना हो, इस जहान मे,
अपना हिसाब तू तो करले , इस जहान मे I 

जो ना तेरा , ना हिसाब ले, तेरे हिसाब मे
ना याद कर, क्या काम है, इस जहान मे I 

ना जीने दे, जो ना जीया, जी कर भी, 
जब तलग जी, ख़यालों मे , जी भर के जी I 

तू तो आज़ाद, तू तो बंजारा 
तेरे जखमो का तू ही मरहम ,
तू ही खुदा , बस तू ही इल्ज़ाम ,
तेरे साँसोमे बसे है तेरा ईमान ई

वो ना आए , वो ना चाहे, चाहे राहे 
तो यह बाहें , यह निगाहें, काहे चाहे ?

अब तो जी ले, थोड़ा जी ले, माफ़ी दे खुद को
बहारो मे आशिक़ों में, हो शामिल, माफ़ी दे खुद को I 

रचना : प्रशांत 

No comments:

Post a Comment