Thursday 21 July 2016

चाँद को क्या मालूम...



चाँद को क्या मालूम चाहते हैं उसे कई धरती वाले
दूर रहकर मगन अपनी किसी ख़यालों में
भूल चला चाहनेवालों को
किसी जाने अनजाने महबूब की खोज में I


ए चाँद
एक नज़र इधर भी
हम भी हैं आशिक़ तेरे दीदार के प्यासे
कुछ बातें हम से भी किया करो
महफ़िल हमसे भी सजाया करो।

रचना : मीरा पाणिग्रही 

Sunday 10 July 2016

थोडिसी बेवफ़ाई जी लेने दो !





छूट गया जीना, कबका मेरे यारो ..
संभले हुए यारो, जलते हुए यारो 
मन उड़ जाए, आसीकी उतर आए 
आवारा जग ढूंदे, लापता जाग जाए I

यह नशियत और ना दो हुज़ूर
इख्तियार, इस्क़ हुकूमत गया
बहुत हो गया, मन का नैया   
मन की धारा ये उमर का घेरा
ना जाने दिल, दिल है कन्हैया I 

दिल चुपके तरसे और चाहे 
कही घूम आए, कही गुम जाए 
कोई हिसाब ना माँगे, खो जाए 
हसीन  पल चुपके फ़िर आए I

क्या बताए दिल कब कब चाहे 
कहानी बने, इतिहास ना लिख पाए 
ना कोई रिश्ते इतिहास नज़र आए 
भूले कुच्छ पल आए, महफ़िल सजाए 
बहकाए, महकाए, नज़राना दे सताए I

रचना : प्रशांत 

Wednesday 6 July 2016

कॉर्पोरेट चेस !







यह कोर्पोरेट महफ़िल है जनाब,
जहाँ लीडर डंका बजाता है, 
उनका हे दुनिया, चाहने से है दुनिया,
याद  बार बार दिलाता  है I


जब तब महफ़िल जमाए, बुलाते हैं
कभी खत, बे-खत  बुलाते हैं
तारीफ़के दो बोल, भूल जाते हैं
दोहराते  है वो नाम और काम 
नये गुमनाम, क्या करे सब काम ??

महफूज़ मेरे आका, मेरे हुज़ूर,
भरे आरमान, और भरे इनसे, 
दिल-ए-मक़सूद, दिल-ए-फरमान,
इनसे बने पहचान , मेरे ईमान I

कहानी बन जाए, इशारा ये आए,  
शाबाशी के फूल तुमसे बरस जाए , 
महफ़िल-ए-काबिल महफ़िल को तरसे,
एक और प्यादा लीडर बन जाए , 
एक और गुमनाम, चुप रह जाए ई

रचना : प्रशांत