Friday 26 August 2016

मदहोशी की आलम थी...


मदहोशी की आलम थी, 
होश की बात निकल आई I 

डर डर के कुछ लिख डाले,
मज़ाक थे हम , नज़र दे डाले
बात होश की थी ,
आज बेहोशी में जुबाँ दे डाले I 

कुछ जो, ना बने हक़ीकत
बयान हुआ और खो गया , 
मुझे आज़ाद कर गया..
दिल महफूज़ और
रिश्ते आज़ाद कर गया I 

रंग बदल ने से पहले 
तसबीर सामने आए 
मंज़ूरे खुदा यही था.....
सारे आम 
जो कबुल ना था, 
कहानी मे आए शायद मंज़ूर था I 

दिल की आवाज़ को हम ने 
इस दर्पण में उतार दी, 
जो दर्पण भी आप हो 
साया दिखे, बाकी गुम हो ई

रचना: प्रशांत  

Saturday 20 August 2016

एक चूहा बड़ा मस्त मिला!




आज देखा,
शुरू  हुआ एक सिलसिलाा,
एक चूहा बड़ा मस्त मिला ,
मौला था वो ,
बोला मौला से मिला I

कुछ बात, 
इन जाम मे है जनाब
चोर हैं हम,
मुहब्बत मे जनाब, 
दे पनाह,
राहेरात कर दे रोशन ,
दे पनाह,
मेरे सुबह कर दे रोशन I

बोला उस्ताद, 
ना करे हम से गीला,
मौला हू मैं भी 
आज मौला से मिला I

राज़ इनसे ताज़ इनसे, 
और ये खुदा का खुदा, 
इनके दामन, छोड़ ना सके ,
इनसे सीखा,
हम आपसे फिदा I

ये सुन 
एक मुस्कान नज़रे दीदार हुआ ,
आशियाना जो महखाना हुआ,
भाई शेर था चूहा, फिर बोला,
बड़ी आरमान था उस्ताद ,
आज बना रिश्तों से रिश्ता,
और जुड़ा आप से रिश्ता I 

रचना : प्रशांत 

Tuesday 9 August 2016

फ्रेंडशिप डे !!!


"दोस्ती पानी पे लिखी इबारत नहीं
आसमान में घुलती सियाही नहीं 
ये तो दिल पे लिखी 
एहसास की मासूम इबादत है I"

यार तेरे क़र्ज़ का यह सफ़र, 
यह ज़िंदगी तुझपे फिदा, 
तुझसे ही ज़िंदा, आज मैं  ज़िंदा,
आवाज़ तू सून, दे मुझे आवाज़, 
आजमा ले वो इतिहास ,
एहसास आज करले ज़िंदा I

ज़िंदा हू तेरे खातिर,  
नज़र आए, कभी नज़रों से दूर,
गुज़रे जो पल, हमारे वो कल,
एहसास आज भी है ताज़ा
बचपन वो जवानी, आज भी है ताज़ा I 

रचना : प्रशांत 

Monday 1 August 2016

रोज़ शाम की बात !


दिल की बात, दिल ही जाने,
बस दिल्लगी पे उतर आता है, 
नज़र फिराए, नज़र चुराए,
नज़र घुमाए, नज़र मे आए,
ना किसि को नज़र  आता है 
ना किसी कि नज़र को भाता है I
तनहा वापस फिर आता है I

ठेस लगा जब यह देखा,  
बेज़ुबान बहरा बयान कर लिया,
हसीन सा पैगाम नज़र करा दिया, 
शाम को एक हसीन तोहफा दिया  
इधर ना जुबा साथ दिया  
ना जवानी कुछ  बोल पाया I 

चल दिए फिर से ख़ामोशी ओढ़े,
आँखों में नमीं, दिल में मायूसी ओढ़े I 

हर बार सोचते हैं की आज तो कह ही देंगे 
बस बात दिल की आज खोल ही देंगे
पर ज़ुबान कमबख्त हिलने से मना करती है I 

कौन जाने वो दिन कब आएगा 
जब ये मुख उनसे कुछ बोल पायेगा 
खैर जब तक कहना  बाक़ी है 
समझेंगे उनका हमसे मिलना ही बाक़ी है I

रचना : प्रशांत