Friday 16 September 2016

एक शराबी से सवाल!



एक कतरा मे खुदा दिखे,
एक कतरा से खुदा बने,
मुहब्बत वो बाँटता जाए, 
प्यासा, तरसा खुद रह जाए I

सवाल उनसे खुदा करे, 
आ किस्मत बदल प्यारे,
सब पे मरे , सब से हारे,
ईन्तेकाम हम मुक़दार करे I 

तारीख तू माँग भाई शराबी, 
खुदा बरकत करना चाहे,
आपनी मौत तू जिले,मांगले,
मेरे जन्नत यू क़बूल करले I 

यह कहने भगबान, 
मैकदे आए , देखे, घबराए,
शराबी जन्नत साथ ले आए ,
प्याले की कमी से ,
कितने मौत वो माँगे,
प्याला भरा छूट जाए,
कितने मौत वो गले लगाए,
मंदिर माने वोही दफ़न होना चाहे I 

रचना : प्रशांत 

Wednesday 14 September 2016

यह कल किधर मिलेगा भाई...



यह कल किधर मिलेगा भाई,
क्या छोटू कुछ तो बोल, 
इधर सब लोचा है,
बोले तो बीड़ू आज एक, 
फिनान्सियाल प्लानर मिला, 
अपनका तो वॉट लगेला I

बोला तेरा सेविंग्स गुल हे रे, 
पक्का लाइफ होएंगा गॉन केस
बोलारे मेरेको, 
कुछ ऐसा-हिच बोलारे,
टारगेट बढ़ाना माँगता है,
सेविंग बढ़ना माँगता है,
फोन उठा और सुपारी ले,
और सर्किट जमकर कमाले I 

यह आज अपना कंट्रोल मे है,  
जब लफ्डा होएंगा कल,
तेरा फुल डार्लिंग जाएगा गुल I 

भाग जाएगी रे पैसा , लिसा, निसा,
होगा बिना पेनसन का टेनसनरे ...,
कोई मामू नही, 
महनगाई मIरेगी अपन को रे I 

प्लानर क्या कुछ डाला रे, 
दिमाग़ का चट्नी बना डाला,
फुल सिनीमाि दिखा डाला,
पैसे फुल और माल होगा गुल,
ऐसा होता क्या रे सर्किट ????
होएंगा ओं जाएगा गोली ,
बोले तो पिस्टल फुल और टारगेट गुल,
तेरा आज फुल और तेरा कल गुल,
उमर गुल तेरा उमर होगा गुल I

एधर अपॉन को फुल टेनसन रे,
ए छोटू फुल कटिंग ला रे I

पैसे होगा फुल और माल होगा गुल,
ट्रिग्गर होएंगा, जाएगा गोली गुम, 
बोले तो पिस्टल फुल और टारगेट गुल,
आज यह तेरा फुल, और कल यह तेरा गुल
उमर गुल तेरा उमर होगा गुल I 

कैसा प्रेज़ेंट ऑन, तो फ्यूचर गॉन  रे,
भगबान का बाप , इन्षुरेन्स क्या रे,
यह फिक्स्ड सेविंग्स बढ़ता कैसा रे,
शाला सेनसेक्स चड़ता कैसे रे I

सोना बॅंक मे रखने का 
और काग़ज़ लेनेका 
ज़मीन क़ब्ज़ा नही, खरीद नेका रे
टॅक्स मे सरकार को वसूली देनेका , 
क्या क्या बोला रे, समझ नही आतेरे
एक तो भेजा फ्राइ 
बोले तो फुल ऑफ कर दिया रे I

यह प्लानर तो अपुनका, पूरा गेम बजा डाला
शाला कालका बोला, और आज का धो डाला..
आज तो खलास होएंगा
टेनसन कैकू लेनेका
यह कल किधर मिलता रे
आज ही गेम बजा डालेंगे रे
डीशक़ुईईएं डिस्क़्क़ुई3उन...

रचना : प्रशांत 

Monday 12 September 2016

जी भर, जी लेने दे साकी!




आज मर जाने दे साकी,
                                            एक ख्वाब जीने दे बाकी,                                              
आज पी लेने दे बाकी,
बह जाने दे सागर,
बस डूब ने दे मुझे,  
संभाल ने दे मुझे I

आज मर जाने दे साकी,
एक ख्वाब जीने दे बाकी I 
जो ना था कभी, था कभी, 
महसूस होने दे, जीने दे,
एहसास दे, एहसान करने दे,
ख्वाब दे , ख्वाबोंको मिलने दे I

आज मर जाने दे साकी,
एक ख्वाब जीने दे बाकी I 
पैमाने रंग भरे संग मेरे,
नज़ारा बार बार झलके,
सपनो से परे तक़दीर,
लकीरोंसे दिखे बेह्के I

आज मर जाने दे साकी,
एक ख्वाब जीने दे बाकी I
जीने दे इन प्याले मे डूबके,
तसबीर दिखे, अलग भी दिखे,
अश्क छलकाए, पैमाने भर जाए,
नूर ना आए, लिहाज़ हो जाए I

आज मर जाने दे साकी
एक ख्वाब जीने दे बाकी I 

रचना : प्रशांत 

Tuesday 6 September 2016

ଅନୁଶୋଚନା ..



ଆଜି ନିଦ ନାହିଁ , ଆଜି ବ୍ୟଥା ନାହିଁ 
ଗନ୍ତବ୍ୟ ପଥର ଆଜି ଦିଗ ନାହିଁ 
ନିସ୍ତବ୍ଧ ରାତିର ସାଥି ଏକ ମୁହିଁ 
ଟୋଲଗେଟ ଦିଶେ , ପାଦେ ଆଗେଯାଇ I....

ହିସାବ ନିକାସ ସତେ ଆଜି ଏବେ 
ଚିଠା ନିଏ କୁହେ ଆଉ କିଛି ଦୂର 
ବ୍ୟସ୍ତ ଜନର ନା ଦିଶେ କୋଳାହଳ 
ଯୌବନେ ଧାଇଁଲେ , ଯୌବନ ଶିଥିଳ I..

ଭିଡ଼ର ମଣିଷ



ମଣିଷ ନୁହନ୍ତି ଖାଲି ପ୍ରତିଯୋଗୀ 
ବିଡମ୍ବନା ଏଟା ସମାଜ ପ୍ରବୃତି 
ନିଚ୍ଛକ ମିଥ୍ୟର ଶସ୍ତା ଆବରଣ 
ଗୋଲାପର ଭିକ୍ଷା କଣ୍ଟକ ବିହୀନ ..
ପଦ ପଦବିଟା ତୁମ ଆଚରଣ ସାର 
ଚରିତ୍ର ସଂଚୟ ଆଉ ଚରିତ୍ର ପ୍ରହାର 
ବୁଢିଆଣୀ ଜାଲ ଚକ୍ରବ୍ୟୁହ ରହସ୍ୟ 
ଜନତାର ନେତା ସମ୍ବିଧାନର ଔରସ

ଅନୁଶୋଚନା ..





ଆଜି ନିଦ ନାହିଁ , ଆଜି ବ୍ୟଥା ନାହିଁ 
ଗନ୍ତବ୍ୟ ପଥର ଆଜି ଦିଗ ନାହିଁ 
ନିସ୍ତବ୍ଧ ରାତିର ସାଥି ଏକ ମୁହିଁ 
ଟୋଲ ଗେଟ ଦିଶେ , ପାଦେ ଆଗେ ଯାଇ I....
ହିସାବ ନିକାସ ସତେ ଆଜି ଏବେ 
ଚିଟା ନିଏ କୁହେ ଆଉ କିଛି ଦୂର 
ବ୍ୟସ୍ତ ଜନର ନା ଦିଶେ କୋଳାହଳ 
ଯୌବନେ ଧାଇଲେ, ଯୌବନ ଶିଥିଳ I..

ତୁମେ ଯେ ପୁରୁଣା ଅଖୋଜା ଆଇନା 
ସ୍ମୃତିରାଜି ହୀନ , ବିଦୀର୍ଣ୍ଣ ଶ୍ରୀହୀନା 
ଅନ୍ତରାତ୍ମା ଯେ ଆହତ, ଅର୍ଥହୀନ ଚରିତ୍ର 
ଜୀବନ ସଂଗୀତ ଖାଲି ଅର୍ଥରେ ସଂଚିତ 
ପୁରୁଣା ଡ଼ାଇରୀ ପୃଷ୍ଠା ଯେ ସୀମିତ ......