Sunday 24 December 2017

थोड़ा सा एहसास, थोड़े सी की बात!



थोड़ा और ज़मीन पे रह जाते तो,
आसमान छू लेते ,
थोड़ा और बर्दाश्त कर लेते तो,
तुम्हे जीत लेते I 

थोड़ी कोशिश और होती तो,
मंज़िलें बदल जातीं,
थोड़े में गिनते, थोड़े में रहते,
थोड़े खुश होते,थोड़े बहक जाते I

थोड़ी सी काम पिते तो,
आज वक़्त ना गिनते,
थोड़ी सी प्यार जताते तो,
आज यादों में होते I

थोड़ी सी काम या थोड़ा हो ज़यादा,
बस एही हिसाब रह गया,
थोड़ी सी कमी ज़िन्दगी में रह गयी,
थोड़ी सी जुदा,जुदा यूँ बह गए I

 थोड़ी सी बाक़ी, बाक़ी ये ज़िन्दगी,
थोड़ी सी काम,थोड़ी ज़यादा ज़िन्दगी,
थोड़ी ये बहकी,थोड़ी ये हलकी,
थोड़ी सी रुकी,थोड़ी थोड़ी महकी...

रचना :प्रशांत 

Thursday 21 December 2017

मुझे ये खबर थी, के बेवफाई तुझमें थी!

मुझे ये खबर थी,
के बेवफाई तुझमें थी,
पर मेरे दिल पे तेरी आँखों का पहरा था,
था एक लगाव जो सागर से गहरा था I

कुछ तो  मुझे  हुआ था ,
के तेरे न होने से एक डर था,
चाहता था तुझे हर पल मेरे सीने में,
तेरे बिना न था मज़ा कुछ जीने में I

आजमाने अपनी किस्मत,पास गए तेरे,
दिल हारे, नींदें हारी,
फिरे  गलियों में आवारा मुरीद बन तेरे I

हुआ कुछ यूँ के न वक़्त साथ चल पाया,
न तेरी खबर रख पाया I

सिलसिला ऐ बेखुदी में ग़ुम,
नज़रों को दिखते सिर्फ तुम I

अब ये आलम है दीवानगी का,
के लगता है मौसम आ गया रवानगी का I

रचना : प्रशांत

इसे हम क्या कहें?

इसे हम क्या कहें?
न सो पाएं न जागे रहे,
इसे हम क्या कहें?

बदल न पाएं, न वही रहे,
इसे हम क्या कहें?
उम्र बीत जाए पर बीती उम्र भूला न पाएं,
इसे हम क्या कहें?

रचना : प्रशांत